प्रकृति के सभी भोग-पदार्थों का अंतिम परिवर्तन नाश होना है। मनुष्य मिले हुए पदार्थों का स्वयं भोग कर सकता है या अन्य जीवों को दे सकता है, अन्यथा इनका नाश होना तो निश्चित है और भोगने की सीमा है, फिर भी मनुष्य इन नाशवान पदार्थों का संग्रह करने के लिए कर्म ही नहीं, पाप कर्म करने से भी परहेज नहीं करता।