एक साधारण मनुष्य अपनी आवश्यकता और इच्छा में भेद नहीं करता. दाल-रोटी का मिलना हम सभी मनुष्यों के स्थूल शरीर की एक आवश्यकता है, लेकिन दाल-रोटी के साथ मलाई कोफ्ता, रायता, अचार, पापड़, कुल्फ़ी आदि की चाह रखने से आवश्यकता ही इच्छा में बदल जाती है। इसलिए अपनी आवश्यकताओं को इच्छा मत बनने दो, अन्यथा यह इच्छाएं ही हमसे उल्टे सीधे काम करवा कर पाप नगरी में घसीटती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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