मनुष्य योनि में पुण्य कर्म करने से स्थूल शरीर पतन से तो बच सकता है, लेकिन स्थूल शरीर में पवित्रता तो निरन्तर निषकाम कर्म करने से ही आती है, जबकि पाप कर्मों के करने मात्र से ही स्थूल शरीर मैला नहीं होता, बल्कि सूक्ष्म और कारण शरीर भी क्रमश: अपवित्र होने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप आत्मा पर आवरण आने लगते हैं, जो हमें परमात्मा से विमुखता का कारण बनते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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