भौतिक प्रकृति की 84,00000 योनियों में सिर्फ मनुष्य योनि में ही किए गए सभी सकाम कर्मों को लिखा जाता है, जिनका सुख-दुख रूपी फल भोगना ही पड़ता है। पुण्य कर्मों का सुख रुपी फल का तो त्याग किया जा सकता है, लेकिन पाप कर्म का फल कर्ता को ही भोगना होता है, अन्य किसी दूसरे-तीसरे को नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर
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