संसार या प्रकृति को स्पष्ट रूप से जान लेने पर संसार से सहज ही वैराग्य होने लगता है और जिसके फलस्वरूप मनुष्य की परमात्मा के प्रति सहज ही जानने की जिज्ञासा जन्म लेती है। यही जिज्ञासा ही मनुष्य को सत्सँग करने की प्रेरणा देती है और अन्ततः परमात्मा से प्रेम करवा देती है, फिर हमें परमात्मा को याद नहीं करना पड़ता, बल्कि परमात्मा की स्मृति सदा ही बनी रहती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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