धर्म का असली अर्थ है, जब मनुष्य स्वयं के जीवन को सुखमयी बनाने से पूर्व प्रकृति के अन्य सभी जीवों के सुख को भी सुनिश्चित कर ले, क्योंकि केवल अपने सुख की प्राप्ति के लिए दूसरे किसी भी जीव/जीवों को किसी भी प्रकार का कष्ट/दुख देना ही अधर्म मान लिया जाता है और मनुष्य योनि में किये गये ऐसे सभी विकर्मोँ/पापों का भविष्य में दुख रुपी फल मिलना निश्चित रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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