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"सन्ध्या-बेला सन्देश"

प्रभु की स्मृति बने रहने मात्र से ही हमारे कर्मों में सुधार होने लगता है और जीवन में भी उमंग-उल्लास बना रहता है, जबकि प्रकृति के भोगों में आसक्ति बने रहने मात्र से ही परमात्मा की विस्मृति होने लगती है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य से पाप कर्म होने कब शुरू हो जाते हैं, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर

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