सभी मनुष्यों को स्थूल शरीरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये धन की जरुरत पड़ती है, लेकिन धन को ही संग्रहित करते रहने से यह इकठ्ठा किया हुआ धन ही एक दिन विषाद/जहर बन जाता है, इसलिए जीवन में मिले हुए अतिरिक्त धन को जरुरतमन्द लोगों में बांटते रहना चाहिये, ऐसा निरन्तर करते रहने से स्वयं का धन भी प्रसाद बन जाता है और प्रसाद में सदा भगवान का आशीर्वाद बना रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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