गुरू व आध्यात्मिक शास्त्रों का श्रध्दापूर्वक सुनना या पढ़ना ही सत्सँग करना है, जोकि केवल मनुष्य योनि में ही सम्भव है, जिसके निरंतर करते रहने से ही भगवान रुपी मंजिल का ज्ञान होता है, गुरु या शास्त्र भी हमें केवल रास्ता ही दिखाते हैं, यदि मनुष्य इन रास्तों पर चलता ही नहीं, तो मंजिल को कभी नहीं पा सकता. देखिए, इतनी छोटी सी बात है, जो अक्सर मनुष्य को मरते दम तक समझ में नहीं आ पाती ? ...सुधीर भाटिया फकीर
Comments
Post a Comment