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"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य के 90% कर्म बने हुए संस्कारों से यानी बने हुए स्वभाववश ही होते हैं। केवल मनुष्य योनि में ही स्वभाव सुधरता भी है और बिगड़ता भी है, अर्थात् मनुष्य अपने जीवन में जैसा स्वभाव बना लेता है, फिर वैसे ही कर्म अपने आप होने लगते हैं और सत्संग के अभाव में अक्सर स्वभाव बिगड़ने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर

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