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"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि एक साधारण मनुष्य के जीवन में कर्म और ज्ञान से स्वभाव उतना नहीं सुधरता, जितना भक्ति करने से स्वभाव सुधरता है और भक्ति केवल और केवल प्रेम पर टिकी है। प्रेम में सदा ही त्याग की भावना प्रधान होती है, लेकिन कलयुग में एक सामान्य मनुष्य सदा ही लेने की फिराक में जीवन भर उलझा रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर

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