निश्काम कर्म करने से हमारा स्थूल शरीर और श्रध्दापूर्वक निरंतर सत्सँग करते रहने से हमारा सूक्ष्म शरीर पवित्र होता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य का मन परमात्मा से जुड़ पाता है, अर्थात् मनुष्य की भक्ति आरंभ होती है, फिर भगवान की भक्ति करने से हमारे कारण शरीर से अशुभ संस्कार समाप्त होने लगते हैं यानी हमारी आध्यात्मिक उन्नति एक गति पकड़ लेती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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