Skip to main content

"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

मनुष्य योनि में ही किए गए सभी प्रकार के पाप और पुण्य कर्म लिखे जाते हैं। जब हमारे किसी कर्म विशेष से दूसरे जीव/जीवों को सुख मिलता है, तो हमारा पुण्य कर्माश्य बनता है और दुख मिलने से हमारा पाप कर्माश्य बनता है। पुण्य कर्मों का सुख रुपी फलों को त्यागा भी जा सकता है, लेकिन दुख रुपी फल तो मनुष्यों को भोगने ही पड़ते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

Comments

Popular posts from this blog

"भोजन/TI+FF+IN《《《《《 मनु" + "ष्य ????? भजन/शास्त्र" -[कक्षा-2591]-सुधीर भाटिया फकीर-20-09-2024

 

वि+वाह =कारण-शरीर/सँस्कार+सूक्ष्म-शरीर/मन, स्थूल-शरीर/भोग?●तलाक●[कक्षा-2595]सुधीर भाटिया फकीर22-9-24

 

आपके जीवन का गणित:- शुद्ध कमाई ?? ऋण/तमो, शून्य/रजो, बचत/सतो-[कक्षा-2657]-सुधीर भाटिया फकीर-23-10-24