संसार को दुखालय कहा जाता है अर्थात् दुखालय रूपी संसार में हम सभी मनुष्यों को दुख रूपी फल/ताप कम-अधिक मात्रा में अपने-अपने कर्मों के हिसाब से मिलते ही रहते हैं (जैसे वर्तमान समय में कोरोना से...), जिसके फलस्वरूप हमारा मन बेचैन व अशांत बना ही रहता है। आत्मा-परमात्मा का सजातीय संबंध है यानी मनुष्य को परम शांति व प्रसन्नता तो केवल परमात्मा से क्रमश: जुड़ने पर ही मिलनी आरंभ होती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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