प्रकृति रुपी माया के 2 रुप हैं, विद्या-माया और अविद्या-माया। अविद्या माया यानी रजोगुणी और तमोगुणी माया, जोकि पुण्य कर्मों व ज्ञान की प्राप्ति से समाप्त हो जाती है, लेकिन विद्या माया यानी सतोगुणी माया, जोकि भगवान की भक्ति करने से ही क्रमश: समाप्त होनी आरंभ होती है, अन्यथा नहीं.....सुधीर भाटिया फकीर
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