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"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

सभी मनुष्यों को अपने जीवन में निरंतर सत्संग करते रहना चाहिए। सत्सँग का फल उस दिन मिलता है, जब मनुष्य को ऐसा बोध होने लगता है कि जीवन भर के संग्रह किए गये सभी धन/पदार्थ बेकार हैं यानी भौतिक उप्लब्दियाँ गौण नजर आने लगती हैं, तभी परमात्मा से सहज ही प्रीति होती है.....सुधीर भाटिया फकीर

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