एकाग्रता रुपी ध्यान एक बीज के समान है, इसे जहां कहीं भी यानी जिस कार्य विशेष में लगाया जाता है, एक समय अंतराल के बाद फिर वहीं पर ज्ञान रूपी फल का अंकुरण होता है। मनुष्य योनि में ही परमात्मा का ध्यान लगा पाना संभव है। इसलिए मिले हुए अवसर का लाभ अवश्य ही उठाना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
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