सँसार में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अधिकांश मनुष्यों का सत्सँग बेमन से होता है, जबकि सभी मनुष्यों को श्रद्धापूर्वक ही सत्संग करना चाहिए अर्थात् हम मनुष्यों को अपना सुनना इतना गहरा बनाना चाहिए कि हमारी सोयी हुई विवेक-शक्ति जागने लगे, ताकि हम सभी मनुष्यों को परमात्मा का रस पीने को मिल जाये यानी हम सबका जीवन आनन्दमयी बने.....सुधीर भाटिया फकीर
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