मनुष्य योनि हमें स्वयं के सुधार के लिए तो मिली ही है, लेकिन अन्य जीवों के विकास में हमें किसी भी प्रकार की बाधा/अवरोध यानी उन्हें दुख/कष्ट या पीड़ा नहीं देनी है। अन्य मनुष्यों/जीवों को भयभीत करना/धमकाना या घूरकर देखना भी एक प्रकार का पाप ही है, क्योंकि हमारे इस कर्म द्वारा उन मनुष्यों/जीवों को दुख मिलता है और कर्म-सिद्धांत के अनुसार फिर भविष्य में हमें भी ऐसे किये पाप कर्मों का दुख रुपी फल भोगना ही पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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