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"ब्रह्म-मुहूर्त उपदेश"

एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में केवल सुखों को भोगने व उनके चिन्तन करने में ही अपना जीवन व्यतीत करता है, जिसके फलस्वरूप मनुष्य के मन-बुद्धि में परमात्मा की स्मृति क्रमश: कमजोर होने लगती है, जबकि प्रत्येक क्षण मृत्यु की स्मृति बने रहने से भी काफी हद तक हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं कमजोर होती हैं और परमात्मा के प्रति भावनाएं मजबूत होने लगती हैं, जो सत्संग करने में हमारी मदद करती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर

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