परमात्मा की स्मृति सदा श्रद्धापूर्वक होनी चाहिए। यही सत्संग है, चाहे शास्त्रों को पढ़ने से हो या सुनने से, कभी बेकार नहीं जाता, फिर किये गये सत्संग का चिन्तन करते रहना चाहिए। यह चिन्तन ही एक दिन हमारा स्वभाव बनने से जीवन की दिशा में सकारात्मक परिवर्तन आ जाते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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