प्रकृति परमात्मा द्वारा संचालित एक अदालत ही समझो, जहाँ मनुष्य योनि में ही किए गए पाप-पुण्य कर्मों का फल निर्धारित किया जाता है। इस अदालत में एक न्याय व्यवस्था है, जहाँ देर भी नहीं है और अन्धेर भी नहीं है, इसलिए मिले हुए मनुष्य जन्म में कभी भी पाप मत करो, अन्यथा ?.....सुधीर भाटिया फकीर
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