मनुष्य अपने जीवन में पढ़ने/सुनने से जितना भी सत्संग श्रद्धापूर्वक करता है, बस वही मन का हिस्सा/संस्कार बनता है। अधिकांश लोग धर्म की बातें पढ़ते/सुनते भी हैं, लेकिन मन से शत-प्रतिशत मानते नहीं, इसीलिये धर्म हमारे व्यवहार में नजर नहीं आता, परिणामस्वरूप कलयुग हर रोज अधिक गहरा होता जा रहा है.....सुधीर भाटिया फकीर
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