जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारे अन्तकरण में शुभ-संस्कार बनने आरंभ होते हैं और पूर्व के बने हुए अशुभ संस्कार धीरे-धीरे मिटने/कमजोर होने लगते हैं, जिससे हमारे नए कर्मों में निष्कामता आने लगती है और प्रभु-भक्ति का बीज अंकुरित होता है, जिससे हमारी आध्यात्मिक यात्रा गति पकड़ लेती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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