मनुष्य योनि में ही किये गये सभी सकाम भाव के कर्म-विकर्म लिखे जाते हैं। सकाम कर्म केवल पदार्थ रूपी फल दे कर नष्ट हो जाते हैं, जबकि निष्काम कर्म आध्यात्मिक ज्ञान रूपी फल देते हैं, जो संसार से वैराग्य और परमात्मा से प्रीति का बीज डाल देते हैं। यह बीज पहले अंकुरित होता है, फिर एक दिन वृक्ष का रूप धारण कर मनुष्य को आनंद रूपी फल देते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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