सभी आत्माएं स्वभाव से ही ज्ञानवान बताई जाती हैं, लेकिन प्रकृति के पदार्थों का मर्यादा से अधिक भोगने से हमारी आत्मा का ज्ञान आवृत हो जाता है और यह आवरण केवल और केवल निरंतर सत्संग करते रहने से ही समाप्त हो पाना संभव है, जबकि सत्संग करने का एकमात्र अवसर केवल मनुष्य योनि में ही मिलता है....सुधीर भाटिया फकीर
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