तन को संसार में हिलाते रहने से यानी कर्म करते रहने से हमारा स्थूल शरीर स्वस्थ रहता है, जबकि सत्संग में मन को टिकाने से मन स्वस्थ रहता है, लेकिन मनुष्य दोनों ही कार्यों से अपने तन और मन को चुराता रहता है और फिर स्वयं ही दुखी होता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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