सुख-दुख सभी मनुष्यों के जीवन आते-जाते रहते हैं। सुख भले ही ढोल-नगाड़े बजाते हुए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद वापिस लौट जाते हैं, जबकि दुख भले ही बिना बुलाए आते हैं, लेकिन एक समय के बाद यह दुख भी चुपचाप चले जाते हैं, क्योंकि सुख-दुख हमारे ही किये हुए कर्मों का फल होते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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