जीवन में निरंतर सत्संग करते रहने का अभ्यास बनाये रखें, ताकि मन में सतोगुण की ज्योत जल ज्ञानरुपी प्रकाश हो, मन में ऐसी ज्योत जलने से ही विषय-भोगों की वासनायें मरने लगती है और विवेक-शक्ति जगने लगती है, जिसके फलस्वरूप परमात्मा की समझ बढ़ने से परमात्मा से प्रीति होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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