मनुष्य योनि सतोगुण में वृद्घि करने के लिए यानी सत्संग करने के लिये ही मिली है और सत्संग करते रहने से ही आध्यात्मिक यात्रा आगे बढ़ती है, जिसके अभाव में अक्सर मनुष्य के कर्म दोषपूर्ण ही होते हैं। इसपर विचार/चिन्तन करते रहना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
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