मनुष्य में निरंतर सत्संग करते रहने से ही हमारे कारण शरीर में शुभ संस्कार बनने लगते हैं और पहले के बने हुए अशुभ संस्कार धीरे-धीरे मिटने/कमजोर होने लगते हैं, जिससे हमारे कर्मों में निष्कामता आने लगती है और भक्ति का बीज अंकुरित होता है, जो हमारी आध्यात्मिक यात्रा को गति प्रदान करता है.....सुधीर भाटिया फकीर
Comments
Post a Comment