एक कहावत है कि जैसी मति, वैसी गति। मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग करते हुए सात्विक बुद्धि/मति भी बना सकता है और सत्सँग के अभाव में यानी कुसंग करते हुए तामसी/राजसी बुद्धि बनाने में भी स्वतंत्र है। मनुष्य जैसी मति बना लेता है, फिर वैसी ही गतिविधियाँ/कार्य/कर्म (पाप-पुण्य) होने से मरने पर वैसी ही सहज गति होती है.....सुधीर भाटिया फकीर
Comments
Post a Comment