स्वयं के खाने के लिये पुरूषार्थ करना तामसी प्रवृति है। स्वयं + परिवार के अन्य सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पुरूषार्थ करना राजसी प्रवृत्ति है, जबकि प्रकृति के सभी जीवों की आवश्कताओं की पूर्ति के लिए यथासंभव पुरूषार्थ करना ही सात्विकता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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