जब तक मनुष्य के मन में विषय-भोगों (गन्ध, रस, रुप, स्पर्श व शब्द) को भोगने की वासना बनी रहती है, तब तक हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संसार से ही जुड़े रहते हैं। तब ऐसी स्थिति में परमात्मा से हमारी शुद्ध भक्ति आरंभ ही नहीं हो पाती और हमारा जन्म-मरण 84,00000 योनियो कर्मों व संस्कारों के अनुसार होता ही रहता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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