एक साधारण मनुष्य का सारा जीवन अपने बने हुए लक्ष्य के इर्द-गिर्द ही घूमता रहता है, अब यदि हमारा लक्ष्य ही धन कमाना है, तो हमारे सभी कर्म ही नहीं, बल्कि विकर्म भी स्वाभाविक ही उसी दिशा में ही होने लगते है, जबकि परमात्मा को पाने का लक्ष्य बन जाने से कम से कम पाप कर्मों से बचने की सम्भावनायें तो प्रबल होती ही जाती हैं......सुधीर भाटिया फकीर
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