केवल भगवान ही अपने आप में पूर्ण सत्ता माने जाते हैं। सम्पूर्णता यानी आनंद, जोकि परमात्मा का ही एक पर्यायवाची नाम है, जबकि सँसार को अपूर्णता/अभावों/दुखों से ही जोड़ा जाता है। हम सभी मनुष्यों को अभावों की दलदल से निकलकर प्रभु को पाकर पूर्ण होना चाहिये, न कि सँसारी आकर्षणों में भटकना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
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