सभी आत्माएं ज्ञानवान ही होती हैं, लेकिन मनुष्य योनि पा कर जैसे-जैसे मनुष्य प्रकृति के विषय-भोगों को मर्यादा से अधिक भोगता है, तब क्रमश: आत्मा का ज्ञान आवर्त होने लगता है और जो जीव जितना अचेत अवस्था में होता है, उसे क्रमश: कम दुख का बोध होता है। सभी पेड़-पौधे लगभग पूर्ण अचेत हैं, इसलिए उन्हें दुखों का कष्ट महसूस नहीं होता, जबकि हम सभी सचेत मनुष्यों को दुख की पीड़ा का पूर्ण अनुभव होता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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