जब-जब मनुष्य के जीवन में विषय-भोगों को भोगने के प्रति रुचि या व्याकुलता बढ़ने लगती है, तब-तब उसमें धन के प्रति लोभ-संग्रहवृति भी बढ़ने लगती है, जो मनुष्य को कब पाप-नगरी में डूबो देती है, मनुष्य को स्वयं भी पता नहीं चलता। इसपर आप भी चिन्तन करें.....सुधीर भाटिया फकीर
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