मनुष्य योनि स्वभाव से तो रजोगुणी है, लेकिन सतोगुण बढ़ा कर विशुद्ध सतोगुणी परमात्मा को पाने का एक अवसर भी है, जबकि कलयुग में ऐसा देरवा जा रहा है कि मनुष्य प्रकृति के विषय-भोगों का अघिक संग करता हुआ मल रूपी तमोगुण का संग करने से भी परहेज नहीं करता, जिसके फलस्वरूप मनुष्य स्वयं ही अपनी अघोगति कर बैठता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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