सुखों को मर्यादा से अधिक भोगते रहने से परमात्मा की स्मृति क्रमश: कमजोर होने लगती है, जबकि परमात्मा की स्मृति बने रहने से हमारी भौतिक सुखों को भोगने की इच्छाएं ही कमजोर होने लगती हैं, जो सत्संग करने में मदद करती हैं, जिसके फलस्वरूप मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति सहज ही होने लगती है.....सुधीर भाटिया फकीर
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