शास्त्रों में बार-बार जोर दे कर कहा गया है कि मनुष्य योनि में हम सभी भाई-बहनों को अपने मिले हुए जीवन में पाप कर्मों से बचने के लिए निरन्तर सत्संग करते ही रहना चाहिए, अन्यथा सत्संग के अभाव में कुसंग सहज ही होने लगता है और कुसंग के प्रभाव से मनुष्य कब और कितने पाप-कर्म कर जाता है, मनुष्य को स्वंय भी पता नहीं चलता.....सुधीर भाटिया फकीर
Comments
Post a Comment