मनुष्य योनि में ही हम अपना स्वभाव सुधार भी सकते हैं और बिगाड़ भी सकते हैं। भोगों में लिप्त रहने से सदा ही स्वभाव बिगड़ता है और निरन्तर सत्संग करते रहने से स्वभाव सुधरने लगता है और स्वभाव बिगड़ने से मरने के बाद नीचे की योनियों में जाना ही पड़ता है, इसलिए जीवन में कुसंग से सदा ही बचना चाहिए.....सुधीर भाटिया फकीर
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