प्रकृति के अमर्यादित विषय-भोग ही चेतन आत्मा के प्रकाश को ढक देते हैं, भले ही आत्मा स्वभाव से ही ज्ञानवान है, लेकिन माया के रजोगुणी/तमोगुणी भोगों के दूषित संग से आत्मा का प्रकाश ढक जाता है, जो केवल भगवान की भक्ति करने से ही समाप्त होता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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