84,00000 योनियो में कर्मफल सिद्घांत केवल मनुष्यों द्वारा किए गए कर्मों-विकर्मों पर ही लागू होता है, अन्य योनियों पर नहीं। इसीलिए भौतिक प्रकृति मनुष्य योनि में किये गये सभी पाप-पुण्य कर्मों का दुख-सुख रूपी फल दिए बिना कभी नहीं छोड़ती, सुख रुपी फलों का त्याग तो सम्भव है, लेकिन दुख रुपी फलों को तो स्वयं ही भोगना पड़ता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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