वास्तव में हम सभी मनुष्य अपने स्थूल-शरीर की इन्द्रियों से नहीं, अपितु मन और बुद्धि की प्रेरणा से ही कर्म करने को प्रेरित/बाध्य होते हैं, इसलिए हमें अपने मन+बुद्धि को सदा ही सात्विक यानी परमात्मा के चिंतन में ही लगाये रखना होगा, अन्यथा पाप-कर्म होने की सम्भावनायें बढ़ने लगती हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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