आध्यात्मिक शास्त्रों को श्रद्धापूर्वक सुनना या पढ़ना ही सत्सँग है, जोकि केवल मनुष्य योनि में ही सम्भव है, जिसके निरंतर करते रहने से ही भगवान का ज्ञान-विज्ञान समझ में आता है, अन्यथा संसार में यूँ ही आना-जाना बना रहता है। इतनी छोटी सी बात है, जो अक्सर मनुष्य को मरते दम तक समझ में नहीं आती ?.....सुधीर भाटिया फकीर
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