अक्सर सत्संग के अभाव में एक साधारण मनुष्य अपने जीवन में मरते दम तक कितने ही ऐसे पाप-कर्म स्वयं भी करता रहता है व अन्य मनुष्यों से भी करवाता रहता है, जिनका उसने अस्थाई सुख भोग भी नहीं लेना होता, लेकिन ऐसे सभी पाप-कर्म बड़े भविष्य में भी हमें बार-बार दुख अवश्य देते रहते हैं.....सुधीर भाटिया फकीर
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