आनंद परमात्मा का एक दिव्य गुण है, जबकि हम सभी आत्माएँ चेतन/ज्ञानयुक्त हैं और ज्ञान का स्वरुप भले ही माया के विषय-भोगों में अधिक आसक्त हो जाने पर अस्थाई रूप से आवर्त हो जाता है, जो क्रमश: निरंतर सत्संग करते रहने से ज्ञान क्रमश: अपनी मूल स्थिति में लौटने लगता है.....सुधीर भाटिया फकीर
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