अक्सर ऐसा देखने में आया है कि अधिकांश 50-60+ उम्र वाले मनुष्य अपने जीवन में सत्सँग की बातों को सुनने/पढ़ने या केवल LIKE करने तक ही सीमित रखते है, उसे अपने व्यवहार में नहीं ला पाते, फलस्वरूप मनुष्य के कर्मों में कोई सुधार नहीं आ पाता.....सुधीर भाटिया फकीर
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