अक्सर दुनिया को एक मेला शब्द से जोड़ दिया जाता है, क्योंकि मेला कभी भी स्थायी रूप से नहीं रहता अर्थात् मेले की चकाचौंध सदा नहीं रहती। जैसे मेले की चकाचोंध में बच्चा अपने मां-बाप से बिछड़ जाता है, वैसे ही मनुष्य भी आज के कलयुगी भोगों में अपने माता-पिता/परमात्मा से बिछुड़ गया है.....सुधीर भाटिया फकीर
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